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Sunday, 22 June 2008

अतृप्ति

अतृप्ति
अतृप्ति के भाव लिए जीता हूँ ,
न जीता हूँ ,न मरता हूँ ।
जिन्दगी तो बस एक कोलाहल है ,
खत्म् न हो एक एसी हलचल है ।
एक बवंडर मेरे मन का ,
चिन्ह छोड़ता रचने- मिटने के वर्तुल का ।
कुछ आकंछायों के बोझ तले
अर्थ भूलता जीवन का ।
जीवन सरिता में अब ,
शोर नही कल-कल का ।
छूट रहा है कुछ जो पीछे,
हिसाब ढूढता उस पल-पल का।
अतृप्ति के भावः लिए जीता हूँ ,
हलाहल के प्याले अब में पीता हूँ ।
न जीता हूँ , न मरता हूँ ,
बस एक भावः लिए में जीता हूँ ।
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