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Tuesday, 30 March 2010

आओ बनायें अपना मध्य प्रदेश

आओ बनायें अपना मध्य प्रदेश
जय देश,जय देश,जय देश
यही है जनता का जनादेश
आओ बनायें अपना मध्य प्रदेश
सब तक पहुचाएं  यही सन्देश
सम्रद्ध करें स्वदेश
बनाकर स्वर्णिम मध्य प्रदेश
जय देश,जय देश,जय देश
स्वराज,न्याय,विकास ,
समता,सुशासन ,लोकतंत्र का
अपनी अंतरात्मा में भर दें निर्देश
ताकि ऐसी सम्रद्धि हो मेरे प्रदेश की
जो गूँज उठे विदेश
आओ बनायें अपना प्रदेश
मध्य प्रदेश,जय देश,जय देश,जय देश.
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इच्छाओं की अठखेलियाँ

मन की भूलभुलैया में
इच्छाओं की अठखेलियाँ
गढ़ती-बुनती झूठे सपने
किन्तु यथार्थ के एहसास के साथ
और तारतम्य में विकृत हो जाता
आत्मविश्वास,व्यक्तित्व, व विचारधारा
निकृष्ट बुद्धि की दूषित शराब के साथ
अवचेतन के आँगन में
पैर पसारती इच्छायों की दुर्गन्ध
तहस-नहस करती मन के पर्यावरण को
बदल देती आत्मा के आवरण को
और शेष रह जाता जीवन के कलरव में
खदबदाता एक विषाद.
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Tuesday, 9 March 2010

संसदीय गरिमा का बलात्कार

संसदीय गरिमा का बलात्कार
हाल ही में महिला आरक्षण विधेयक के मुद्दे पर भारतीय संसद में विपक्ष के कुछ सदस्यों द्वारा संसदीय गरिमा का जिस तरह से बलात्कार किया गया है,विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए इससे अधिक शर्मनाक और क्या हो सकता है ? लोकतंत्र के मंदिर की व्यवस्था बिगाड़ने वाले इन जन-प्रतिनिधियों के हाथो में क्या देश की व्यवस्था सुरक्षित रह सकती है ? यह विश्लेषण का विषय हो सकता है. संसदीय अनुशासन को सरे-आम नग्न करने वाले इन जनप्रतिनिधियों को क्या वास्तव में संसद में रहने का अधिकार है ? इस पर आगामी चुनाव में जनता को अवश्य सोचना चाहिए. विधेयक की प्रतिया फाड़कर सभापति महोदय पर फेककर व आसंदी पर लगे माइक को उखाड़ने के प्रयास कर इन सदस्यों ने अपनी असभ्यता,बर्बरता व नीचता का परिचय दिया है, तो उन्हें दण्डित न कर सक्षम अधिकारियो ने अपनी नपुंसकता का परिचय दिया है; भारत-वर्ष में सदियों से यही तो होता आ रहा है;और यही कारण है की सांसद जब चाहे तब सरे-आम संसदीय गरिमा के वस्त्र उतार कर इस देश की जनता को समूचे विश्व में शर्मसार कर देते है. क्या इन सांसदों को राष्ट्रीय अस्मिता को सार्वजनिक रूप से छति पहुचाने का अपराध करने के लिए अभियोजित नहीं किया जाना चाहिए ? चूँकि संसद की चारदीवारी के भीतर उठने वाले मुद्दों को सामान्यतः न्यायलय के समक्ष नहीं लाया जा सकता है तथा इनको न्याय-निर्णीत करने की महती जिम्मेदारी पीठासीन अधिकारियो की होती है ; अतः उनका यह वैधानिक व नैतिक कर्तव्य है की वे राष्ट्रीय अस्मिता व संसदीय अनुशासन के अनुरक्षण के लिए सक्रियतापूर्वक कठोर कार्यवाही करे अन्यथा वे भी इन दुर्योधनो को बचाने के लिए इतिहास में भीष्म-पितामह की तरह जाने जायेंगे ; और यह निश्चित है की जब तक अपेक्षित कठोर कार्यवाही नहीं की जाएगी तब तक इन दुस्साहसी जनप्रतिनिधियों की बदोलत संसदीय कार्यवाही बार-बार स्थगित की जाएगी व भारत की जनता की कमाई से वसूला गया अरबो-खरबों रुपयों का धन ऐसे ही व्यर्थ जाता रहेगा तथा भारतीय संसद लोक-वित्त के संरक्षण के अपने प्राथमिक दायित्व को अपने पैरो तले ही कुचलती रहेगी.
"जब रक्षक ही भक्षक बन जाये,
तब हमें देये कौन सहारा.
किसे बताये,कैसे बताये,
लोकतंत्र मेरा इस जग में ऐसे ही हारा.
नेता खा गए पैसा सारा-का-सारा,
और हमें सिखाते संयम का नारा.
जिसे सौप दिया राजदंड हमने,
उसने हमें मारा-ही-मारा.
अब आप बताये हमें देये कौन सहारा......?"