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Thursday, 22 May 2008

DO KAIDI

"दो कैदी,
स्वतंत्रताओं की दीवारों के भीतर, दो कैदी
यथार्थ को संभावनाओ से धकेलते, दो कैदी
घर की चार-दीवारी को स्वतंत्रता का बन्धन मानते
छत को आकाश बताते दो कैदी
सिद्धांत और व्यवहार को मिलाने की चाहत मैं छितिज
की ओर ताकते दो कैदी
कर्म से भाग्य और भाग्य से कर्म तराशते
दो कैदी
वाद एवं प्रतिवाद से संवाद का रूप अखतियार
करते दो कैदी
आज के बन्धन मैं कल की स्वतंत्रता को सीचते
दो कैदी
कल और कल मैं अपना आज समेटते, दुख को सुख से
एवं म्रत्त्यु से अमरत्व जोड़ते.............. दो कैदी."
( मनीष कुमार पटेल )
http://livetalent.org/
http://megamedicus.com/

1 comment:

Dr. Vinod Sen said...

hi manish
it is very good poem
keep going.